हररोज की तरह मैं कमरे में तन्हा सा,खुद के वजूद के बारे में सोच रहा था।कोई और भी था, झूठ नाम था उसका। जो सच नहीं है, वह सब झूठ ही है क्या?वह परियों की कहानियां सारी,वह अफसाने जिनमें मौत भी चलती है,दौड़ती है, बातें करती हैं?हाथी चींटी के वह सारे चुटकुले,जिन्हें सुनकर में मायूसी… Continue reading सच या झूठ
Month: May 2020
रात
जल गए सारे, जो भी मैं धूप में सेक रहा था,सपने जो कल अंधेरे में हमने देख रखें थे।मैं कबसे अपने क़िस्मत को कोसता सोच रहा हूं,तुम भी चुपके से साथ में मेरे बैठ चुकी हो। तुम भी तो अपने सूरज को देखकर छुप जाती हो,मैं भी अपने सच से मुंह छिपाता फिर रहा हूं,मैंने… Continue reading रात